Saturday, 10 February 2024
चना की सरकारी खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर चालू, भावों में तेज़ी आसकती है l
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किसान व चने की एम.एस.पी ( न्यूनतम समर्थन मूल्य ) में दूरी क्यों ?
देश के सबसे बड़े चुनाव लोक सभा चुनाव का समय चल रहा है । इस समय सभी राजनीतिक दल किसानों के हितेषी बने हुए है। लेकिन अन्नदाता को राज्य सरकार की स्थिलाता के चलते केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम मूल्य पर चना बाज़ार में बेचना पड़ रहा है । भारत के सबसे बड़े चना उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश की स्थानीय मंडियों में चने का मूल्य 16 अप्रैल तारीख को को 3,800-4100 रुपये प्रति क्विंटल था । जबकि केद्र सरकार ने कृषि उत्पादन वर्ष जुलाई 2018- जून 2019 में किसान द्वार उत्पादित चने का एमएसपी 4,620 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है.
दाल या दलहन बाजार के विश्लेषक बताते हैं कि चने की सरकारी खरीद में राज्य सरकार की निष्क्रियता के kaean किसानों को एमएसपी से कम मूल्य पर चना स्थानीय बाज़ारों में बेचना पड़ रहा है । सरकारी खरीद एजेंसी नैफेड ने चालू वित् वर्ष में 15 अप्रैल तक मात्र 4,56,030 क्विंटल टन चना खरीदा है , जिसमें मध्यप्रदेश से मात्र 10,400 क्विटल चने की ही सरकारी खरीदी हुई है ।
सरकारी खरीदी की एजेंसी नैफेड ने इस वर्ष में चने की सरकारी खरीद का लक्ष्य करीब 2.25 करोड़ क्विटल का रखा है, जबकि पिछले वर्ष 2.72 करोड़े क्विटल चने की सरकारी खरीद हुई थी. बाजार सूत्रों के अनुसार, बुधवार को अधिकतर कृषि उत्पादक मंडियों में चने का व्यापार भगवान् महावीर जी की जयंती पर राजकीय अवकाश के कारन बंद था, लेकिन मंगलवार को मध्यप्रदेश की नीमच मंडी में चने का भाव 3700-4000 रुपये प्रति क्विटल, कटनी मंडी में चने का भाव 3,600-4050 रुपये प्रति क्विटल तथा दमोह मंडी में 3700-4200 रुपये प्रति कुंटल था.
राजस्थान की बीकानेर कृषि उपज मंडी में चने का मूल्य मंगलवार को 50 रुपये की तेजी के साथ 4,500 रुपये प्रति क्विटल था। देश की राजधानी नई दिल्ली की लारेंस रोड कृषि उपज मंडी में बुधवार को राजस्थान लाइन के चने का मूल्य पिछले सत्र की तुलना में मामूली तेज़ी के साथ 4,500 रुपये प्रति क्विटल और मध्यप्रदेश लाइन के चने का मूल्य 4,375-4400 रुपये प्रति क्विटल था। बाजार जानकारों के अनुसार चने के भाव कम होने के कारण अभी मंडियों में चने की आवक कमजोर है। जिन किसानों को पैसे की आवश्यकता है वो ही स्थानीय मंडियों में अपनी फसल लेकर आ रहे हैं । बाकि किसान तेज़ी की आशा में चने को अभी रोके हुए है ।
सरकारी खरीद केन्द्र पर चने को बेचने पर करीब दो से तीन महीने तक किसान को पैसा नही मिलता है । जिससे कृषक परेशान हो जाते है। स्थानीय सरकार की स्थिलता के कारण खरीद किए हुआ माल नेफेड के वेयरहाउस में नहीं लगता जिससे भुगतानआने में देरी होजाती है । किसान सरकारी खरीद केंद्र के बजे दुसरे व्यापारियों को माल बेचन सही मानते है। समय पर तुलाई हो जाती है व समय पर भुगतान हो जाता है ।
कुछ कारणों में किसान का व्यापारियों से उधार पर लेन देन होता है । इस लिए किसानों को व्यापारियों को सिद्ध बिक्री कारन सरल पड़ता है । किसान को अपना पुराना उधर चूका कर नया उधर लेना होता है । इसलिए किसान को फसल की कटाई पर पुरानी उधार चुकाने के लिए चने को बाज़ार में जल्दी बेचन जरुरी होता है
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Thursday, 18 April 2019
किसान को चने की एम.एस.पी का फायदा क्यों नहीं मिलता ?
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Wednesday, 3 April 2019
क्या चना के भावों में तेज़ी जारी रहेगी ?
चना आयत पर लगी रोक, स्थानीय मांग व कम उत्पादन की स्थ्थिति में, क्या चना के भावों में तेज़ी जारी रहेगी ? इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए पूरा YOUTUBE विडियो देखे l
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Monday, 25 March 2019
चने की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीदी चालू , क्या भावों में तेज़ी आएगी ?
केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प लिया है l लेकिन कुप्रबंधन व राज्य सरकारों की सुस्ती के कारण किसानों को चना समर्थन मूल्य से 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल नीचे भाव पर बेचना पड़ रहा है। चना उत्पादक कृषि उपज मंडियों में चना के भाव 3,800 से 4,100 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
मध्य प्रदेश की चना उत्पादक कृषि उपज मंडियों में चना की नई फसल की आवक बढ़ रही है लेकिन अभी तक समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद शुरू नहीं हुई है। उज्जैन मंडी से प्राप्त जानकरी के अनुसार किसानों का नया चना 3,900 रुपये प्रति क्विंटल के बिका है। मध्यप्रदेश की इंदौर मंडी में चना के भाव 4,000 से 4,050 रुपये प्रति क्विंटल रहे। मध्य प्रदेश में चालू रबी मौषम में चना की बुवाई 34.32 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल राज्य में चना की बुवाई 35.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल हुई थी।
इस बार चने का कुल उत्पादन कम होने का अनुमान है केंद्र सरकार ने चालू रबी खरीदी सीजन 2019-20 के लिए चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 220 रुपये बढ़ाकर 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले रबी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,400 रुपये प्रति क्विंटल था। कृषि मंत्रालय के द्वारा जरी आंकड़ों के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में चना का उत्पादन घटकर 103.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 111 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू रबी में चना की बुवाई 10.21 फीसदी की कमी आकर कुल बुवाई 96.59 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही हुई है जबकि पिछले साल 107.57 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई हुई थी।
राजस्थान की मंडियों से चना की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीद 25 मार्च से शुरू की जायेगी तथा अन्य राज्यों की मंडियों से भी जल्दी ही खरीद शुरू की जायेगी। नाफेड ने बताया कि राजस्थान से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 4.17 लाख टन चना खरीद का लक्ष्य है जबकि पिछले रबी सीजन में राज्य से 5.79 लाख टन चना की खरीद की थी। रबी विपणन सीजन 2018-19 में नेफेड ने समर्थन मूल्य पर 27.24 लाख टन चना की खरीद की थी, जिसमें से करीब 18.50 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है।
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राजस्थान की मंडियों में नए चना की आवक शुरू हो गई है। कृषि विपणन विभाग, राजस्थान के अनुसार राज्य की मंडियों में चना के औसत भाव 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल है तथा होली के बाद उत्पादक मंडियों में चना की नई फसल की आवक और बढ़ गयी है । राजस्थान में चना की बुवाई चालू रबी में 15.02 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 15.05 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार राज्य में चना का उत्पादन 21.63 लाख टन होने का अनुमान है।
महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर मार्किटिंग बोर्ड के अनुसार राज्य की मंडियों में औसत चना के भाव 4,138 रुपये प्रति क्विंटल रहे। समर्थन मूल्य पर तेलंगाना से खरदी हो रही है नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार तेलंगाना से समर्थन मूल्य पर 21 हजार टन से ज्यादा चना की खरीद हो चुकी है।
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Wednesday, 20 March 2019
तुअर या अरहर में 2019 तेज़ी रहेगी या मंदी ?
तुहर या अरहर भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है। विश्व का 65 % तुअर का उत्पादन भारत में होता है तथा भारत का 80% उत्पादन 6 राज्य महाराष्ट्, मद्य प्रदेश, कर्नाटका, यूपी गुजरात व झारखण्ड से आता है। तुहर या अरहर की नयी फसल की आवक बाज़ार में शुरू हो गयी है । मद्यप्रदेश व महारष्ट्र की मंडियों में तुहर की नयी फसल आ रही है। इस महीने में तुहर के भाव में गिरावट देखी गयी है ।
इस वर्ष भारत में खरीफ 2018 में तुहर की बुवाई 45.82 लाख हक्टेयर क्षेत्र में हुयी थी । जो कि पिछले साल के बराबर ही थी । लेकिन कमजोर व बिखरे हुए मानसून के कारण तूहर की फसल को भारी क्षति पहुंची। बाज़ार के जानकारों के अनुसार तूहर का उत्पादन इस वर्ष 50-55% ही रहने का अनुमान है। अगर पिछले वर्ष के आंकड़ो से आंकलन निकाले तो इस वर्ष तुहर का उत्पादन मात्र 20-22 लाख मेट्रिक टन होने की उम्मीद है।
नाफेड के पास तुहर का पुराना स्टॉक 5.75 मीट्रिक टन के आस पास था । वर्ष 2018 की खरीदी का नया स्टॉक 1.87 लाख मीट्रिक टन है । इस तरह नाफेड के पास तुहर का कुल स्टॉक 7.62 लाख मीट्रिक टन के आस पास है । तुहर की घरेलु खपत 32-34 लाख मीट्रिक टन के आस पास रहती है जन्हा तक आयत का सवाल है इस वर्ष तुहर का आयत 3 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं है । तकरीपन 3 लाख टन के आस पास घरेलु व्यापारियों व फेक्टरियों के पास तुहर का स्टॉक है ।
इस तरह सारे माल को जोड़ दे तो इस वर्ष 31-34 लाख टन के आस पास तुहर की उपलब्धता बाज़ार में रहने की उम्मीद है । तुहर की उपलब्धता व खपत में कोई ज्यादा अंतर नहीं है परन्तु इसमे से नाफेड का 5.75 मीट्रिक टन का पुराना स्टॉक निकाल दे तो उपलब्धता 25-28 लाख मीट्रिक टन की रह जाती है। इससे उपलबध्ता व मांग का बैलेंस बिगड़ सकता है। ऐसी परिस्थिति में तुहर का बाज़ार भाव नाफेड की खरीदी व बिक्री निति पर निर्भर करेगा ।
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इन सब के अलावा मार्च एंड में व्यापारी नयी खरीदी से बच कर चलते है। लोक सभा के चुनाव व नयी सरकार की अनिश्चितता में सरकार की पालिसी अभी तय नहीं है जिससे व्यापारी तुहर की खरीदी में ज्यादा हाथ डालने से बच कर चलेंगे । साथ में कैश पैसे की तंगी के कारण तुहर के भाव मार्च, अप्रैल व मई में 4500-5000 की रेंज में ही रहने की उम्मीद है, इसी बीच नाफेड तुहर की कोई खरीदी या बिक्री का निर्णय लेता है तो मार्किट में तुहर के भाव की चाल बदल सकती है ।
Will Toor or Arhar or Pigeonpea prices go up or Down in 2019 ?
Pigeonpea or Toor is an important pulses crop of India. India produce 65% of world Toor production. in India 80% Too production comes from six states; Maharshtra, Madhya Pradesh, Karnatka, Utter Pradesh, and Jharkhand. New crop of Toor has started to arrive in local markets. Fresh arrival has started in local grain markets Madhya Pradesh and Maharshtra. Prices of toor or pigeonpea have fallen in march month.
This year there was cultivation of toor or pigeonpea on 45.82 Hactare land in Kharif-2018 crop that was almost equal to previous year ? Crop was damaged due to poor and uneven rainfall. As per the market man there will be just 50-55% productivity of toor or pigeon pea. IF we calculate in context to previous year then We that this year there will be only 20-22 Lac metric ton of toor or pigeonpea production.
There was 5.75 lac Metric ton old stock with NAFED. In year 2018 NAFED procured 1.87 lac metric ton new stock. There is 7.62 lac Metric ton stock with NAFED. There is domestic consumption of 32-34 lac metric ton toor or pigeon pea annually. As per import of toor or pigeon pea in concerned there is maximum 3 lac metric ton import of toor or pigeon pea only. On an average there is 3 lac metric ton stock laying with traders and processors or factories.
If we add all the availability then total availability of toor or pigeon pea for this year is 31-34 lac metric tons. There no major difference between availability and consumption of toor or pigeon pea. If we remove 5.75 lac metric ton old stock of NAFED then total availability will be dropped to 25-28 lac metric ton then balance of availability and consumption will mismatch. In that case market price of toor will depend on selling and buying of toor or pigeon stock by NAFED.
Traders and stockist will avoide from buying toot from farmers in March month due to year end closing. New policy on pulses is not clear due to Lokh sabha election and formation of new Govt. Traders will avoid keep away from heavy buying or stocking. There is also shortage of cash in market in these case toor prices will move between the range of 4500-5000 in March, April and May month. Meanwhile if NAFED change its policy for buying or selling of Toor or pigeonpea then price movement may change.
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