देश के सबसे बड़े चुनाव लोक सभा चुनाव का समय चल रहा है । इस समय सभी राजनीतिक दल किसानों के हितेषी बने हुए है। लेकिन अन्नदाता को राज्य सरकार की स्थिलाता के चलते केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम मूल्य पर चना बाज़ार में बेचना पड़ रहा है । भारत के सबसे बड़े चना उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश की स्थानीय मंडियों में चने का मूल्य 16 अप्रैल तारीख को को 3,800-4100 रुपये प्रति क्विंटल था । जबकि केद्र सरकार ने कृषि उत्पादन वर्ष जुलाई 2018- जून 2019 में किसान द्वार उत्पादित चने का एमएसपी 4,620 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है.
दाल या दलहन बाजार के विश्लेषक बताते हैं कि चने की सरकारी खरीद में राज्य सरकार की निष्क्रियता के kaean किसानों को एमएसपी से कम मूल्य पर चना स्थानीय बाज़ारों में बेचना पड़ रहा है । सरकारी खरीद एजेंसी नैफेड ने चालू वित् वर्ष में 15 अप्रैल तक मात्र 4,56,030 क्विंटल टन चना खरीदा है , जिसमें मध्यप्रदेश से मात्र 10,400 क्विटल चने की ही सरकारी खरीदी हुई है ।
सरकारी खरीदी की एजेंसी नैफेड ने इस वर्ष में चने की सरकारी खरीद का लक्ष्य करीब 2.25 करोड़ क्विटल का रखा है, जबकि पिछले वर्ष 2.72 करोड़े क्विटल चने की सरकारी खरीद हुई थी. बाजार सूत्रों के अनुसार, बुधवार को अधिकतर कृषि उत्पादक मंडियों में चने का व्यापार भगवान् महावीर जी की जयंती पर राजकीय अवकाश के कारन बंद था, लेकिन मंगलवार को मध्यप्रदेश की नीमच मंडी में चने का भाव 3700-4000 रुपये प्रति क्विटल, कटनी मंडी में चने का भाव 3,600-4050 रुपये प्रति क्विटल तथा दमोह मंडी में 3700-4200 रुपये प्रति कुंटल था.
राजस्थान की बीकानेर कृषि उपज मंडी में चने का मूल्य मंगलवार को 50 रुपये की तेजी के साथ 4,500 रुपये प्रति क्विटल था। देश की राजधानी नई दिल्ली की लारेंस रोड कृषि उपज मंडी में बुधवार को राजस्थान लाइन के चने का मूल्य पिछले सत्र की तुलना में मामूली तेज़ी के साथ 4,500 रुपये प्रति क्विटल और मध्यप्रदेश लाइन के चने का मूल्य 4,375-4400 रुपये प्रति क्विटल था। बाजार जानकारों के अनुसार चने के भाव कम होने के कारण अभी मंडियों में चने की आवक कमजोर है। जिन किसानों को पैसे की आवश्यकता है वो ही स्थानीय मंडियों में अपनी फसल लेकर आ रहे हैं । बाकि किसान तेज़ी की आशा में चने को अभी रोके हुए है ।
सरकारी खरीद केन्द्र पर चने को बेचने पर करीब दो से तीन महीने तक किसान को पैसा नही मिलता है । जिससे कृषक परेशान हो जाते है। स्थानीय सरकार की स्थिलता के कारण खरीद किए हुआ माल नेफेड के वेयरहाउस में नहीं लगता जिससे भुगतानआने में देरी होजाती है । किसान सरकारी खरीद केंद्र के बजे दुसरे व्यापारियों को माल बेचन सही मानते है। समय पर तुलाई हो जाती है व समय पर भुगतान हो जाता है ।
कुछ कारणों में किसान का व्यापारियों से उधार पर लेन देन होता है । इस लिए किसानों को व्यापारियों को सिद्ध बिक्री कारन सरल पड़ता है । किसान को अपना पुराना उधर चूका कर नया उधर लेना होता है । इसलिए किसान को फसल की कटाई पर पुरानी उधार चुकाने के लिए चने को बाज़ार में जल्दी बेचन जरुरी होता है
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